Saturday, May 28, 2016

Saaj singar (Kavita)

एक व्यक्ति के साज - सिंगार का कविता के द्वारा लिंग निरपेक्ष ब्यौरा - वर्णन

 साज - सिंगार 

कवि - विदुर सूरी

सुनिए सुनिए छबि का ब्यौरा अति सुन्दर सुरूप साज सिंगार
बरनूँ सज - धज सोलह सिंगार मानस का रूप निखारे जो

सिख पर जूड़ा और चोटी का फूल केस की बेनी वहाँ जड़ें कुसुम
माँग पे लटके टीका सिर से, पास सहारा उसकी पट्टी

माथे बिंदिया टिकली दमके, आँखें काली अंजवाई हुईं
नाक में नथुनी गोल गड़ारी, लौंग छेद में नथने में लगा

होंठ लाल रंगे रंगत से रंगीले डंडे से लीपे
कान के ऊपर गहे कानफूल, नीचे करनफूल झुमके बाली

लटकन लटके लहरे चलते, कभी टिके सहारे से जकड़े
गल पे माला हार नौलखा, रानी का हार, हार हर प्रकार

मोती की लड़ी हार रतन मनि सब मनियों से मालाएँ हों जड़ी
गिरें छाती पर गले से लेकर सिकड़ियाँ लड़ियाँ सुंदर गढ़ीं

कटि पे करधनी तागड़ी हो तन पर सुवसन रंगीला - सा
धड़ पे है टिका सुंदर ढब से कुरता कमीज उचित ब्यौंत का

रंग ढंग और कढ़ाई मनभावने लहंगा या पायजामा और चादर
टखनों पर नेवर पायल झन - झनकार करे बजके चलते

हाथों पर कंगन कड़े बंगड़ी चूड़ी पहुंचे गजरे भी
उँगली अंगूठी मूठी हथफूल हाथ और पाँव मेहँदी - लीपे

यों बरना सलोना साज - सिंगार हर लिंग में मानव - शोभा में निखार
न लोभ, न ओछी दीठ, न भेद, केवल छबि एक राय दिखाई

© Vidur Sury. All rights reserved
© विदुर सूरी। सर्वाधिकार सुरक्षित

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