Friday, May 27, 2016

Naav ki neenv (Kavita)

जब अपनी नैया टुकड़े - टुकड़े होकर टूट पड़े, तब मन की भावनाओं के आगे अपनी चतुराई और बूझ को रखना पड़ेगा। तभी बच पाएगा डूबनेवाला। इसी से जुड़ी एक कविता, और हमारी वैश्व दृष्टिकोण.....

नाव की नींव 

कवि - विदुर सूरी

क्या किया जाए जब मझधार में
थपेड़ा नाव को लगे उतारने

बाई झकझोरी हिला - डुलाए
चारों ओर अँधेरा छाए

नाव की हर पटरी लगे टूटने
पानी लगे हर छेद से फूटने

कील बिछड़ें नाव रूप खोए
जल बहके हर खूँट डुबोए

मस्तूल धँसे धीरे - धीरे
आँधी पाल को फाड़े - चीरे

पतवार पड़ गए सागर में
न खेवइया, माँझी है धरने

नभ पे डरावना उथल - पुथल हो
कोई न भनक है कि क्या कल हो

न जाने कब घेरनेवाला जल हो
डर तड़पाता हरेक छिन - पल हो

कोई न साथी, कोई न सहारा
और न दिखे एक भी चारा

कैसे चमके आस का तारा
जो मन ने अपना धीर हारा ?

जिया है पहिला डर का मारा
दूसरा है एक हिया बिचारा

लगे की बखेड़ा नहीं जाएगा टारा
अंदर जलें ज्यों धूप में पारा

तब अंत में किया ही क्या जाए
मिटने की होनी देख जी करे हाय - हाय

कैसे दिल को आस दिलाएँ
सूझे किनारा दाएँ न बाएँ

धर्म से घिन कर, सदा अपने आप पे आदर
अश्लीलता का विरोध, सब लिंग, लोग पक्के से बराबर

कड़ी स्थिति में आप बचाकर
अलौकिकता है अनहोनी, उससे कभी मत दर

बुराई के बढ़ावे, टुच्चे औरों का न दे साथ
स्वाधीनता, कला, भाषा ज्यों सुंदर लाट

हटा अनचाहे आवेग के आघात
समझ, बहुत बढ़कर है जिसकी बात

ज्ञान ले प्यारे अनुभूतियों से, कर काम स्वीकरणीयता की ओर
आत्म सम्मान, प्यार और नेकी को दे सबसे ऊँचा ठौर

मन न माने, और तू न मनाए
समझ से तरने की नाव बनाए

© Vidur Sury. All rights reserved
© विदुर सूरी। सर्वाधिकार सुरक्षित

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